आज पंचांग 19 अगस्त, 2024
Panchang, an ancient Hindu calendar, holds profound significance in Hindu culture. Derived from the Sanskrit words “Panch” meaning “five” and “Ang” meaning “part,” Panchang refers to the five components that constitute a traditional Hindu calendar: Tithi (lunar day), Vara (weekday), Nakshatra (star), Yoga, and Karana. It serves as a comprehensive guide, offering insights into auspicious and inauspicious timings for various activities, aligning life with celestial energies.
*~आज का हिंदू पंचांग~*
हिंदू पंचांग – 19 अगस्त, 2024
शुभ सोमवार – – शुभ प्रभात्
74-30 मध्यमान 75-30
__________दैनिक पंचांग विवरण_________
आज दिनांक………………….19.08.2024
कलियुग संवत्…………………………5126
विक्रम संवत्………………………….. 2081
शक संवत्……………………………..1946
संवत्सर………………………….श्री कालयुक्त
अयन………………………………दक्षिणायन
गोल…………………………………….. उत्तर
ऋतु……………………………………… वर्षा
मास…………………………………… श्रावण
पक्ष………………………………………शुक्ल
तिथि… पूर्णिमा. रात्रि. 11.55 तक / प्रतिपदा
वार………………………………….. सोमवार
नक्षत्र………श्रवण. प्रातः 8.10 तक / धनिष्ठा
चंद्रराशि……… मकर. सायं. 7.01तक / कुंभ
योग….शोभन. रात्रि. 12.46* तक / अतिगंड
करण………….विष्टि(भद्रा)-अपरा.1.32 तक
करण………बव. रात्रि. 11.55* तक / बालव
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नोट-जिस रात्रि समय के ऊपर(*) लगा हुआ हो
वह समय अर्द्ध रात्रि के बाद सूर्योदय तक का है
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*विभिन्न नगरों के सूर्योदय में समयांतर मिनट*
श्री सनातन हिंदू पंचांग के अनुसार
दिल्ली -10 मिनट———जोधपुर +6 मिनट
जयपुर -5 मिनट——अहमदाबाद +8 मिनट
कोटा – 5 मिनट————-मुंबई +7 मिनट
लखनऊ – 25 मिनट——बीकानेर +5 मिनट
कोलकाता -54 मिनट–जैसलमेर +15 मिनट
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-सूर्योंदयास्त दिनमानादि-अन्य आवश्यक सूची-
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सूर्योदय…………………. .प्रातः 6.08.00 पर
सूर्यास्त…………………. .सायं. 7.01.36 पर
दिनमान-घं.मि.सै………………… 12.53.35
रात्रिमान-घं.मि.सै…………………11.06.49
चंद्रास्त…………………… 6.39.29 AM पर
चंद्रोदय…………………….7.01.45 PM पर
राहुकाल…..प्रातः 7.45 से 9.21 तक(अशुभ)
यमघंट.. पूर्वा. 10.58 से 12.35 तक(अशुभ)
गुलिक……………अपरा. 2.12 से 3.48 तक
अभिजित………..मध्या.12.09 से 1.01 तक
पंचक…………………अपरा. 1.32 पर प्रारंभ
हवन मुहूर्त(अग्निवास)…………..आज नहीं है
दिशाशूल……………………………..पूर्व दिशा
दोष परिहार…….. दूध का सेवन कर यात्रा करें
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विशिष्ट काल-मुहूर्त-वेला परिचय
अभिजित् मुहुर्त – दिनार्द्ध से एक घटी पहले और एक घटी बाद का समय अभिजित मुहूर्त कहलाता है,पर बुधवार को यह शुभ नहीं होता.
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ब्रह्म मुहूर्त – सूर्योदय से पहले का 1.30 घंटे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता है..
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प्रदोष काल – सूर्यास्त के पहले 45 मिनट और
बाद का 45 मिनट प्रदोष माना जाता है…
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गौधूलिक काल सूर्यास्त से 12 मिनट पहले एवं
12 मिनट बाद का समय कहलाता है
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भद्रा वास शुभाशुभ विचार
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भद्रा मेष, वृष, मिथुन, वृश्चिक के चंद्रमा में स्वर्ग में व कन्या, तुला, धनु, मकर के चंद्रमा में पाताल लोक में और कुंभ, मीन, कर्क, सिंह के चंद्रमा में मृत्युलोक में मानी जाती है यहां स्वर्ग और पाताल लोक की भद्रा शुभ मानी जाती हैं और मृत्युलोक की भद्रा काल में शुभ कार्य वर्जित होते हैं इसी तरह भद्रा फल विचार करें..
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* दैनिक सूर्योदय कालीन लग्न एवं ग्रह स्पष्ट *
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लग्न ………………… सिंह 1°56′ मघा 1 मा
सूर्य …………………. सिंह 2°20′ मघा 1 मा
चन्द्र …………….. मकर 22°6′ श्रवण 4 खो
बुध *^ …………….. सिंह 2°27′ मघा 1 मा
शुक्र ……. .सिंह 22°55′ पूर्व फाल्गुनी 3 टी
मंगल ………. वृषभ 25°20′ मृगशीर्षा 1 वे
बृहस्पति ………… वृषभ 23°6′ रोहिणी 4 वु
शनि * …… कुम्भ 23°24′ पूर्वभाद्रपद 2 सो
राहू * ……. मीन 14°31′ उत्तरभाद्रपद 4 ञ
केतु * …………… कन्या 14°31′ हस्त 2 ष
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दिन का चौघड़िया
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अमृत…………….प्रातः 6.08 से 7.45 तक
शुभ…………….प्रातः 9.21 से 10.58 तक
चंचल…………..अपरा. 2.12 से 3.48 तक
लाभ……………अपरा. 3.48 से 5.25 तक
अमृत…………….सायं. 5.25 से 7.02 तक
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रात्रि का चौघड़िया
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चंचल………सायं-रात्रि. 7.02 से 8.25 तक
लाभ……रात्रि. 11.12 से 12.35 AM तक
शुभ…..रात्रि. 1.58 AM से 3.22 AM तक
अमृत…रात्रि. 3.22 AM से 4.45 AM तक
चंचल…रात्रि. 4.45 AM से 6.08 AM तक
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(विशेष – ज्योतिष शास्त्र में एक शुभ योग और एक अशुभ योग जब भी साथ साथ आते हैं तो शुभ योग की स्वीकार्यता मानी गई है )
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शुभ शिववास की तिथियां
शुक्ल पक्ष-2—–5—–6—- 9——-12—-13.
कृष्ण पक्ष-1—4—-5—-8—11—-12—-30.
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दिन नक्षत्र एवं चरणाक्षर संबंधी संपूर्ण विवरण
संदर्भ विशेष -यदि किसी बालक का जन्म गंड नक्षत्रों (रेवती, अश्विनी, अश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा और मूल) में होता है तो सविधि नक्षत्र शांति की आवश्यक मानी गयी है और करवाना चाहिये..
आज जन्मे बालकों का नक्षत्र के चरण अनुसार राशिगत् नामाक्षर..
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08.10 AM तक—–श्रवण—-4——खो
01.35 PM तक—-धनिष्ठा—-1——-गा
07.01 PM तक—-धनिष्ठा—-2——-गी
_________राशि मकर – पाया ताम्र_________
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12.22 AM तक—-धनिष्ठा—-3——–गू
05.45 AM तक—-धनिष्ठा—-4——–गे
उपरांत रात्रि तक—शतभिषा—-1——-गो
_________राशि कुंभ – पाया ताम्र ________
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_____________आज का दिन___________
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व्रतविशेष……………………………..पूर्णिमा
अन्य व्रत…………………श्रावण स्नान संपूर्ण
अन्य व्रत…………………. कोकिला व्रत पूर्ण
पर्व विशेष…………. रक्षाबंधन (भद्रा उपरांत)
समय विशेष…..पवित्र चातुर्मास विधान जारी
समय विशेष..श्री शिव श्रावण अनुष्ठान संपूर्ण
दिवस विशेष……….. राष्ट्रीय स्वतंत्रता दिवस
दिवस विशेष…………………..संस्कृत दिवस
दिवस विशेष………………. श्रावणी उपाकर्म
दिवस विशेष………… अमरनाथ यात्रा संपूर्ण
दिवस विशेष………….. विश्व मानवता दिवस
दिवस विशेष…………विश्व फोटोग्राफी दिवस
पंचक…………………. सायं 7.01 पर प्रारंभ
विष्टि(भद्रा)……………………………. नहीं है
खगोलीय……………………………….नहीं है
सर्वा.सि.योग…………………प्रातः 8.10 तक अमृत सि.योग………………………….नहीं है
सिद्ध रवियोग………………. प्रातः 8.10 तक ___________________________________
___अगले दिन की प्रतीकात्मक जानकारी____
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दिनांक………………………20.08.2024 तिथि…….भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा मंगलवार
व्रत विशेष…………………………….नहीं है
अन्य व्रत…………………………….. नहीं है
पर्व विशेष…………………………….नहीं है
समय विशेष….पवित्र चातुर्मास विधान जारी
दिवस विशेष…….. विश्व अक्षय ऊर्जा दिवस
दिवस विशेष……….राष्ट्रीय सद्भावना दिवस
दिवस विशेष…….राष्ट्रीय जल सप्ताह दिवस
पंचक……………………………….. जारी है
विष्टि(भद्रा)……………………………नहीं है
खगोलीय.मृगशिरायां 1गुरु. अपरा.4.13 पर
सर्वा.सि.योग………………………… .नहीं है अमृत सि.योग……………………….. नहीं है
सिद्ध रवियोग………………………… नहीं है
_____________आज विशेष ____________
Panchang Today: Aug 19, 2024
राखी बांधने की प्रथा की सर्वप्रथम शुरूआत किसने की, कब और कैसे शुरू हुई यह परंपरा
सावन के महीने के अंतिम दिन यानी सावन माह की पूर्णिमा तिथि रक्षाबंधन का त्योंहार मनाया जाता है. रक्षाबंधन का त्योंहार भाई-बहनों के बीच अटूट प्यार को दर्शाता है. रक्षाबंधन यानी रक्षा का बंधन. राखी के दिन बहनें पूजा करके भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधकर उनके लिए मंगल कामना करती हैं. वहीं भाई अपनी बहनों को रक्षां करने का वादा करते हैं।
इस साल रक्षाबंधन का पर्व 19 अगस्त 2024, सोमवार के दिन मनाया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई. साथ ही सबसे पहले किसने किसे राखी बांधी थी?
रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है. यह पर्व अपने भाई की कलाई पर धागा बांधने और उपहार देने से कहीं अधिक है. यह आपकी गहरी भावनाओं को व्यक्त करने और कभी ना टूटने वाले बंधन का उत्सव मनाने का प्रतीक है. भारत में एक पारंपरिक हिंदू त्योहार, रक्षाबंधन, भाई-बहनों के रिश्ते को याद करता है. ये उत्सव, जैविक संबंधों से बाहर, वैश्विक एकता के भारतीय मूल्य (वसुधैव कुटुंबकम) का प्रतीक है, जिसका मतलब है कि पूरी दुनिया एक परिवार है।
क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन पौराणिक काल से पहले ही मनाया जाता था? ऐसा माना जाता है कि इस उत्सव की शुरुआत सतयुग में हुई थी और मां लक्ष्मी ने राजा बलि को रक्षासूत्र बांधकर इस परंपरा का शुभारंभ किया। रक्षाबंधन की शुरुआत को लेकर बहुत सी कहानियां और पौराणिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं.
रक्षाबंधन का इतिहास
रक्षा बंधन का त्यौहार भाई-बहन के प्यार और भाइयों द्वारा बहनों की रक्षा का प्रतीक है. इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखी बांधती हैं और उनकी लंबी आयु की कामना करती हैं. इस दिन भाई बहनों की रक्षा करने का वचन लेते हैं।
1. इंद्र और इंद्राणि की कथा
भविष्य पुराण में इंद्र देवता की पत्नी शुचि ने उन्हें राखी बांधी थी. एक बार देवराज इंद्र और दानवों के बीच एक भयानक युद्ध हुआ था. दानव जीतने लगे तो देवराज इंद्र की पत्नी शुचि ने गुरु बृहस्पति से कहा कि वे देवराज इंद्र की कलाई पर एक रक्षासूत्र बांध दें. तब इंद्र ने इस रक्षासूत्र से अपने और अपनी सेना को बचाया. वहीं, एक और कहानी के अनुसार, राजा इंद्र और राक्षसों के बीच एक क्रूर युद्ध हुआ, जिसमें इंद्र पराजित हो गए. इंद्र की पत्नी ने गुरु बृहस्पति से कहा कि शुचि इंद्र की कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांध दे. राजा इंद्र ने इस रक्षा सूत्र से ही राक्षसों को हराया था. रक्षाबंधन का त्यौहार तब से मनाया जाता था।
2. राजा बलि को मां लक्ष्मी ने बांधी थी राखी
राजा बली का दानधर्म इतिहास में सबसे महान है. एक बार मां लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर भगवान विष्णु से बदला मांगा. कहा जाता है कि राजा बलि ने एक बार एक यज्ञ किया. तब भगवान विष्णु ने वामनावतार लेकर दानवीर राजा बलि से तीन पग जमीन मांगी. श्रीहरि ने वामनावतार ने दो पग में पूरी धरती और आकाश को नाप लिया. राजा बलि ने समझा कि भगवान विष्णु स्वयं उनकी जांच कर रहे हैं. उन्होंने तीसरा पग रखने के लिए भगवान के सामने अपना सिर आगे कर दिया।
फिर उन्होंने प्रभु से कहा कि अब मेरा सब कुछ चला गया है, कृपया मेरी विनती सुनें और मेरे साथ पाताल में रहो. भक्त भी भगवान को बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए. यह जानकर देवी लक्ष्मी ने गरीब महिला के रूप में राजा बलि के पास गई और उन्हें राखी बांधी. फिर राजा बलि ने कहा- मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है. इसके बाद देवी लक्ष्मी अपने असली स्वरूप में आ गई. देवी ने राजा से कहा- आपके पास भगवान विष्णु है और मुझे वहीं चाहिए. राजा बलि ने भगवान विष्णु को हर साल चार माह पाताल लोक में रहने के लिए कहा. इसलिए चार महीने चतुर्मास का समय होता है जब विष्णु जी चार माह के लिए विश्राम पर होते है. यही चार महीने का समय चातुर्मास कहे जाते हैं।
महाभारत में द्रौपदी ने कृष्ण को बांधी राखी
शिशुपाल भी इंद्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ में उपस्थित था. जब शिशुपाल ने श्रीकृष्ण का अपमान किया, तो श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल को मार डाला. लौटते समय कृष्णजी की छोटी उंगली सुदर्शन चक्र से घायल हो गई और रक्त बहने लगा. तब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली पर अपनी साड़ी का पल्लू बांधा. तब श्रीकृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि वह इस रक्षा सूत्र को पूरा करेंगे. जब द्रौपदी को कौरवों ने चीरहरण किया, तो श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर द्रौपदी की रक्षा की. मान्यता है कि श्रावण पूर्णिमा का दिन था जब द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की उंगली पर साड़ी का पल्लू बांधा था।
यमराज और यमुना की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुना मृत्यु के देवता यमराज को अपना भाई मानती थी. एक बार यमुना ने अपने छोटे भाई यमराज को लंबी उम्र देने के लिए रक्षासूत्र बांधा था. इसके बदले में यमराज ने यमुना को अमर होने का वरदान दे दिया. प्राण हरने वाले देवता ने अपनी बहन को कभी न मरने का वरदान दिया. तभी से यह परंपरा हर श्रावण पूर्णिमा को निभाई जाती है. मान्यता है कि जो भाई रक्षा बंधन के दिन अपनी बहन से राखी बंधवाते हैं, यमराज उनकी रक्षा करते हैं।
The Relevance of Panchang in Daily Life
In contemporary times, Panchang remains an invaluable tool, guiding millions in making crucial decisions concerning weddings, engagements, travel, business ventures, and religious ceremonies. It’s not merely a calendar but a repository of cosmic wisdom, believed to influence the outcomes of endeavors undertaken during specific astrological configurations.
Tithi: The Lunar Day
Tithi signifies the phase of the moon and plays a pivotal role in determining auspicious timings for rituals and ceremonies. It consists of 30 Tithis, each representing a specific angle between the sun and moon. From Pratipada (first day) to Amavasya (new moon) and Purnima (full moon), each Tithi holds unique significance, impacting human emotions, actions, and spiritual endeavors.
Vara: The Weekday
Vara refers to the days of the week, each associated with a celestial deity. Understanding the influence of different weekdays on specific activities aids in optimizing productivity and success. For instance, Monday, ruled by the moon, is auspicious for initiating new ventures, while Saturday, governed by Saturn, is conducive to spiritual practices and introspection.
Nakshatra: The Lunar Mansion
Nakshatra denotes the 27 lunar mansions traversed by the moon during its monthly cycle. Each Nakshatra exerts a distinct influence on human affairs, influencing personality traits, career choices, and relationship dynamics. By aligning actions with favorable Nakshatras, individuals can enhance prosperity and well-being.
Yoga: The Combination
Yoga signifies the auspicious or inauspicious combinations formed by the positions of the sun and moon. There are 27 Yogas, each associated with unique attributes and effects. Harnessing the energy of propitious Yogas empowers individuals to achieve success and fulfillment in their endeavors.
Karana: The Half of a Lunar Day
Karana represents half of a Tithi and influences the commencement of activities. With 11 Karanas classified into two categories – fixed and movable, it’s crucial to select an appropriate Karana for initiating tasks to ensure favorable outcomes.
Panchang Today: Aug 19, 2024
Tithi Analysis
- Krishna Paksha Dwadashi: Ideal for seeking spiritual enlightenment and engaging in charitable acts.
- Rohini Nakshatra: Favorable for artistic pursuits, creativity, and nurturing relationships.
- Vriddhi Yoga: Conducive for growth-oriented activities and financial investments.
- Taitila Karana: Suitable for activities requiring endurance and perseverance.
Harnessing the Power of Panchang
Incorporating Panchang insights into daily life fosters harmony with cosmic rhythms, enabling individuals to navigate challenges with wisdom and grace. By leveraging the guidance provided by Panchang, one can optimize opportunities for success and fulfillment in all endeavors.
Conclusion
Panchang, with its intricate wisdom and celestial insights, serves as a beacon of guidance in the journey of life. Embracing its teachings empowers individuals to tread the path of prosperity, aligning their actions with cosmic energies for holistic well-being.
Astro Guru Ji
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